Saturday, 10 May 2014

ये दर्द, ये तन्हाईयाँ मेहमान हैं मोहसिन

हर सिम्ट-ए-ग़म-ए-हिज्र के तूफान हैं मोहसिन
मत पूछ के हम कितने परेशान हैं मोहसिन

हर चेहरा नज़र आता है तस्वीर की सूरत
हम शहर के लोगों से भी अंजान हैं मोहसिन

जिस शहर-ए-मुहब्बत ने हमें लूट लिया है
उस शहर से अब कूच के इमकान हैं मोहसिन

कश्ती अभी उम्मीद की डूबी तो नहीं है
फिर क्यों तेरी आँखों में ये तूफान हैं मोहसिन

कर इनका अदब रख इन्हें सीने से लगा कर
ये दर्द, ये तन्हाईयाँ मेहमान हैं मोहसिन

मोहसिन नकवी
 

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