Saturday, 10 May 2014

सबसे खास तो मै हूँ कोई आम न था।

प्यार उसका कभी सरेआम ना था ।
वफ़ा परस्ती थी और बदनाम न था ।

 भरी महफ़िल में वो गले सबसे मिला ।
सिर्फ मेरी ओर ही उसका सलाम न था ।

 भूलकर मुझको एक लम्बे अरसे से ।...
चैन से था पर मुझको ही आराम न था ।


 उसकी आँखों के कोरों में हमेशा मै था ।
पर मोहब्बत का वहां कोई पैगाम न था ।

 सबकी खैर खबर तस्दीक से उसे थी ।
केवल मेरा ही वहां कोई नाम न था ।

 देख कर मुझे इस अदा से मचला पाठक ।
 कि सबसे खास तो मै हूँ कोई आम न था।


--  योगेन्द्र पाठक  चंदौली

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