Saturday, 10 May 2014

दौर 'तन्हा' ही गुज़र जायेगा

वक़्त जैसा भी क़हर ढाएगा।
दिल सदाक़त से ही टकराएगा।।

शीशा-ए-दिल ज़रा सी ठोकर से।
अब न टुकड़ों में बिखर जाएगा।।

ऐसी सच्चाई से अन्जान थे हम।
वो सितम करके मुकर जाएगा।।

रूह की हद से निकलने वाला।
प्यार जिस्मों पे ठहर जायेगा।।

दिल के ज़ख्मों को छुपाने के लिये।
लब भी ख़ामोश मुस्कुराएगा।।

आह होठों से न निकलेगी कभी।
ग़म न आँखों में उतर पायेगा।।

हर हक़ीक़त से रूबरू होकर।
दिल फ़साना ही नज़र आएगा।।

अब न उम्मीद का दामन थामें।
ये न तक़दीर को घर लायेगा।।

अब ये तन्हाई हमें प्यारी है।
दौर 'तन्हा' ही गुज़र जायेगा।।


--डॉ0 सरोजिनी 'तन्हा'

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