Monday, 12 May 2014

हर हाल में जीने वाला, कभी जिदंगी से हारा नहीं मिला

दर-ब-दर भटकती रही कश्तियाँ किनारा नहीं मिला
अपना बना जब अजनबी फिर दोबारा नहीं मिला
हर एक के दर्द को अपना दर्द समझता रहा मैं
पर खुद गिरा जो एक बार, कोई सहारा नहीं मिला
बाहर से कुछ और, अंदर से कुछ और ही मिले लोग
समझुं अपना किसी को ऐसा कोई इशारा नहीं मिला
दुनिया का हर सुकून-ओ-आराम को पा गया मैं
आसमान मिलने पर भी मुझे एक सितारा नहीं मिला
नफरत की आग में क्यों ताउम्र जलते रहते हैं लोग?
क्या उस शहर में कोई प्यार का मारा नहीं मिला?
'ख्वाहिश' एक ना एक दिन मेहनत अपनी भी रंग लायेगी
हर हाल में जीने वाला, कभी जिदंगी से हारा नहीं मिला

--  ख्वाहिश

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