Saturday, 18 April 2015

End of the story.. Thanks all who came and viewed me.. but Sorry I wont be able to continue

End of the story.. Thanks all who came and viewed me.. but Sorry I wont be able to continue

समय है,
पर समय कहां है
वर्तमान में व्यस्त हो जाना
आखिर कहां मना है
लिखने को मन करता तो है
पर मैने ही मना कर रखा है
इस सफर का भी है आखिरी पड़ाव
ये भी मैने ही तय कर रखा है
वक्त को व्यस्त करना मजबूरी है
यादों के अतीत से निकलना भी ज़रूरी है
खुद को सलीके से काम में उलझाना है अब
स्वयं के मनतरंगो को सुलझाना है अब
इंतेज़ार व्यर्थ है और वजह भी कहाँ छोड़ी थी
मैं जहां था निपट तन्हा, उसने भी तभी नज़र मोड़ी थी
खुद को संभाल कर, उन अवसादों से उभार लिया है
दर्द से निकल कर, खुद को निखार लिया है
अब ये फैसला भी, न लिखने का ठीक ही है
हाँ इस पन्ने का आखिरी पड़ाव अब नज़दीक ही है।

-- निःशब्द

Monday, 19 January 2015

अगर सवाल खड़े होने लगे तो प्यार झूठा है

अगर सवाल खड़े होने लगे तो प्यार झूठा है
मिलके भी नहीं मिल पाए तो इंतजार झूठा है

रोटी से निवाला तोड़ने का मन न करे अगर
बुद्ध बनने को निकल पड़ो ये घर बार झूठा है

कहाँ होती हैं फूलों की सेज, ज़िन्दगी की राहें
काँटों पर साथ नहीं चल सके वो यार झूठा है

चींख जोर से मगर आवाज न होने पाए कोई
आत्मा से रब तक न पहुंचे तो गुहार झूठा है

तुम्हें रब ने गढ़ा तो तुम फिर ऐसे क्यों ‘मधु’
या तो तुम झूठे या फिर वो कुम्हार झूठा है

डॉ. मधुसूदन चौबे



अजीब अहमक है

आदमी जाने क्या क्या संभालकर रखता है
अजीब अहमक है, आंसू पाल कर रखता है

मार डालेगी एक दिन अतीत की परछाइयाँ
फिर भी उन्हें आदमी देखभाल कर रखता है

कागज़ पर उन उँगलियों से बना था सितारा
अपनी जान से ज्यादा ख्याल कर रखता है

घर के साथ कहीं ख़ाक न हो जाए जिन्दगी
पुरानी तस्वीर को जेब में डालकर रखता है

बाकी तो सब आनी, जानी, फ़ानी है ‘मधु’
शाश्वत यादों से खुद को निहालकर रखता है

डॉ. मधुसूदन चौबे

वोह बातों-बातों में आँखों में पानी दे गया


काश वह लौट आये मुझ से यह कहने
तुम होते कौन हो मुझ से बिछड़ने वाले

~~~~~~~

ज़िन्दगी भर जिसे दोहरा सकु ऐसी कहानी दे गया
वोह बातों-बातों में आँखों में पानी दे गया.....

वोह अपने साथ मेरी दुनिया भी ले जा रहा था
मुझे तो सिर्फ वोह अपनी यादों की निशानी दे गया

एक दूजे को अलविदा कहना न उसे आया न मुझे
वक़्त-ए-रुखसत की वोह एक शाम सुहानी दे गया

ज़िन्दगी यूह गुज़र रही थी जैसे बस अब थम जायेगी
मेरा साथ दे कर मेरी ज़िंदगी को वोह जवानी दे गया

अगर मंज़िलें जूदा है तो जुदा ही सहीं "ख्वाहिश"
ज़िन्दगी के कुछ पलों को वोह ज़िन्दगानी दे गया


~~~~~ख्वाहिश~~~~~

नये ग़म चाहिये होते हैं कभी पुराने ग़म को भुलाने के लिये

कोइ चलता है फक़त दो कदम साथ निभाने के लिये
बहुत वक्त लग जाता है किसी को अपना बनाने के लिये

खामोशियों की कोइ आवाज नहीं होती, ये दुनिया जानती है
चीख उठती हैं खामोशियाँ भी, कभी कुछ सुनाने के लिये

गुजर चुका हैं उम्मीदों का काफ़िला कुछ यूँ मेरी राह से
सोचता हूँ एक ग़म और मिल जाये अब, खुद को आज़माने के लिये

हमने समझा है इस ज़माने की बेरुखी को बड़ी देर के बाद
यहाँ हौंसला चाहिये 'प्यारे' बेवजह मुस्कुराने के लिये

मुझे आता भी नहीं था कभी अपने जख्मो की नुमाइश करना
जानता हूँ, कोइ नहीं मिलता तुम्हें अपने सीने से लगाने के लिये

हमें पुकार लो जब चाहो हम मिलेगें वहीं जहां बिछड़े थे
बस इतना समझ लो, हम हाथ नहीं मिलाते कभी छुड़ाने के लिये

'ख्वाहिश' यहां सभी लोग जिदंगी जीने का फ़न जानते हैं
नये ग़म चाहिये होते हैं कभी पुराने ग़म को भुलाने के लिये

- ख्वाहिश

आखिरी पड़ाव नज़दीक है - This Blog gonna end soon :(

समय है,
पर समय कहां है
वर्तमान में व्यस्त हो जाना
आखिर कहां मना है
लिखने को मन करता तो है
पर मैने ही मना कर रखा है
इस सफर का भी है आखिरी पड़ाव
ये भी मैने ही तय कर रखा है
वक्त को व्यस्त करना मजबूरी है
यादों के अतीत से निकलना भी ज़रूरी है
खुद को सलीके से काम में उलझाना है अब
स्वयं के मनतरंगो को सुलझाना है अब
इंतेज़ार व्यर्थ है और वजह भी कहाँ छोड़ी थी
मैं जहां था निपट तन्हा, उसने भी तभी नज़र मोड़ी थी
खुद को संभाल कर, उन अवसादों से उभार लिया है
दर्द से निकल कर, खुद को निखार लिया है
अब ये फैसला भी, न लिखने का ठीक ही है
हाँ इस पन्ने का आखिरी पड़ाव अब नज़दीक ही है।

-- निःशब्द

Tuesday, 13 January 2015

कभी तुझ पर ऐ खुदा कभी खुद पर नाज़ कर डाला

जब जब लगा किस्मत ने हमें नज़रअंदाज़ कर डाला
एक नए सफर का हम ने तब आग़ाज़ कर डाला ,

गैरों को खुश करने की कीमत यूँ है चुकाई,
अपने किसी अज़ीज़ को हम ने नाराज़ कर डाला ,

बिखरे बिखरे नज़र आ रहे थे सुर हमको इसके
दुरुस्त हमने इक बार फिर दिल का साज़ कर डाला ,

हर बार हम ने अपना लीं हैं ज़माने की हर रवायत,
हर बार ज़माने ने क्यों इस पर ऐतराज़ कर डाला ,

एक नया किस्सा अब मुझमे जवान हो रहा है,
एक पुरानी कहानी को उम्रदराज़ कर डाला

इश्क हमारा तुम पर जब हो ही न पाया ज़ाहिर
दिल की अंदरूनी तह में दफ़न ये राज़ कर डाला ,

ये सोच कर कि हिस्सा हूँ मैं इस कायनात का तेरी,
कभी तुझ पर ऐ खुदा कभी खुद पर नाज़ कर डाला ,

चन्द्र शेखर वर्मा

Sunday, 11 January 2015

अभी तो मेरे किस्सों की दास्तान बाकी है

डूब रही है सांसें मगर ये गुमान बाकी है
आने का किसी शख्स के अभी इकमान बाकी है

मुद्दत हुई इक शख्स को बिछड़े हुए लेकिन
आज तक मेरे दिल में एक निशान बाकी है

वो सायबान छिन गया तो कोइ ग़म नहीं
अभी तो मेरे सर पे ये आसमान बाकी है

कश्ति जरा किनारे के करीब ही रखना
बिखरी हुइ लहरों में अभी तूफान बाकी है

उसके अश्कों ने लब सी दिये वरना
अभी तो मेरे किस्सों की दास्तान बाकी है

- अज्ञात 

Sunday, 4 January 2015

चल आ एक बार फिर जिंदगी से प्यार करते हैं

खारे आंसुओं पर मीठी मुस्कान से वार करते हैं
चल आ एक बार फिर जिंदगी से प्यार करते हैं

आखिर ये चुनौतियाँ कब तक उठा पाएंगी गर्दनें
इन्हें काट फेंकने को हौंसले पर तेज धार करते हैं

जो छुट गया उससे बेहतर मिलेगा तू यकीन रख
आशा और विश्वास के बाग़ को सदाबहार करते हैं

मन की महक के साथ तन चमके तो बुरा क्या
नये जूते, कपड़े, टाई, हेयर डाई से श्रृंगार करते हैं

घर के आलिये में रख दृढ़ता के कई सूरज ‘मधु’
आँखों के आत्मविश्वास से दूर अन्धकार करते हैं


-डॉ. मधुसूदन चौबे

Friday, 2 January 2015

मेरे आँसूं और ये तारे एक से हैं

दीपक, जुगनू, चाँद, सितारे एक से हैं
यानी सारे इश्क के मारे एक से हैं

हिज्र की शब में देख तो आके मेरे चाँद
मेरे आँसूं और ये तारे एक से हैं

दरिया हूँ मैं बैर-भाव मैं क्या जानू
मेरे लिये तो दोनो किनारे एक से हैं

मेरी कश्ती किसने डुबोई क्या मालूम
सारी लहरें, सारे धारे एक से हैं

कुछ अपने, कुछ बेगाने और मैं खुद
मेरी जान के दुश्मन सारे एक से हैं

-अज्ञात

Monday, 29 December 2014

बरसती नहीं आँखें मगर दिल उदास तो है

उस शख्स को मेरा हल्का सा एहसास तो है
बे-दर्द सही वो मेरा हमराज तो है

वो आये ना आये मेरे पास लेकिन
शिद्दत से मुझे उसका इंतजार तो है

अभी नहीं तो क्या हुआ मिल ही जायेंगे कभी
मेरे दिल में उस से मिलने की आस तो है

प्यार की गवाही मेरे आसूँओं से ना माँग
बरसती नहीं आँखें मगर दिल उदास तो है

-अज्ञात

Sunday, 28 December 2014

मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू

मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू
सुना हैं आबोशारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं

खुदारा अब तो बुझ जाने दो इस जलती हुई लौ को
चरागों से मजारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं

कहू क्या वो बड़ी मासूमियत से पूछ बैठे हैं
क्या सचमुच दिल के मारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं

तुम्हारा क्या तुम्हें तो राह दे देते हैं काँटे भी
मगर हम खाकसारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं

इस साल का यह एक सलाम आखरी है

इस साल का यह एक सलाम आखरी है
दिल से निकली जो यह एक कलाम आखरी है

फिर नया साल होगा, नई-नई बातें होंगी
एहसासों में डूबा हुआ यह पयाम आखरी है

हर ख्वाब, हर ख्याल में तेरा ही ज़िक्र है
मेरे लबों पर जो आये तेरा नाम आखरी है

रो देने से बदलती नहीं तक़दीरें 'जनाब'
मत सोच ज़िन्दगी का यह मुकाम आखरी है

ना रोको हमें आज, बहकने दो कुछ पल के लिए
होंटों तक आये चल कर जो यह जाम आखरी है

"ख्वाहिश" के लफ़्ज़ों में हैं ज़िन्दगी की महक
इस बज़्म में मेरे ग़ज़ल की यह शाम आखरी है

~~~~~ख्वाहिश~~~~~~~~

Saturday, 27 December 2014

सह सकता है आदमी

हजार हजार साल जिन्दा रह सकता है आदमी
अपने कर्म से अपनी कथा कह सकता है आदमी

आसान रास्ते अमरत्व की ओर कभी नहीं जाते हैं
चाहे तो उल्टी दिशा में भी बह सकता है आदमी

हारे हुए तूफ़ान-जलजले ने कहा एक दुसरे से यूँ
हर प्रहार अपने सीने पर सह सकता है आदमी

पहाड़ से भी अटल है उसे डगमगाना मुश्किल है
बस केवल अपने डिगाए ही ढह सकता है आदमी

जुबाँ से नहीं बयां होगी ये अमर दास्तान ‘मधु’
पसीने और पैर के छालों से कह सकता है आदमी

-डॉ. मधुसूदन चौबे

Friday, 26 December 2014

वक्त इंसान को थकाता भी है तपाता भी है

वक्त इंसान को थकाता भी है तपाता भी है
बड़े गहरे जख्म देकर उन्हें भर जाता भी है

कभी महरूम रखता है दाल रोटी से वक्त
तो कभी बंदे को बुलंदी पर पहुंचाता भी है

आज मिली हार, मार जलालत हद से ज्यादा
कल मस्तक पर केसर तिलक लगाता भी है

माँ की गोद और लोरी से देता है मीठी नींद
फिर माँ को छीनकर बरसों जगाता भी है

देता है ठोकरों से घुटनों और मुंह पे चोट
यही धूल से उठाकर गले लगाता भी है

जिसका वक्त सध जाए उसके क्या कहने
वह मिट्टी को छूकर सोना बनाता भी है

जन्म से मौत तक कई मोड़ आते हैं ‘मधु’
औकात देकर वक्त औकात बताता भी है

-डॉ. मधुसूदन चौबे

Tuesday, 23 December 2014

सब के साथ रह कर भी, मैं तन्हा रहा बहुत

ना जाने क्यूँ इस शहर में ये चर्चा रहा बहुत
सब के साथ रह कर भी, मैं तन्हा रहा बहुत

हमेशा सच कहने की आदत ने मुझे बुरा बना दिया
झूठ की दुनिया में सच हर एक को चुभता रहा बहुत

मुद्दतें गुजर गइ उसने मेरा हाल तक ना पुछा
एक मैं था उसके हक़ में नजमें लिखता रहा बहुत

बदलते हुए हालात अक्सर इंसान को जीना सीखा देते हैं
एक वक्त था जब अपने साये से भी मैं डरता रहा बहुत

मेरी कहानी का ये एक हिस्सा, मैनें आज तक सबसे छुपाया है
बुरे दौर में जहां मरना आसान था, वहां मैं जीता रहा बहुत

इंसान की खूबियाँ आज धन-दौलत, शोहरत से नापी जाती है
सच कहूँ तो मेरे भी गिर्द ये एक तमाशा रहा बहुत

'ख्वाहिश' कीमत उन अश्कों की हैं जो आँखों से बहते नहीं..
रोना आसान है, इंसान वही है जो हर हाल में हंसता रहा बहुत

- ख्वाहिश

Monday, 22 December 2014

किसी के दर्द का जब तक कोई हिस्सा नहीं बनता

किसी के दर्द का जब तक कोई हिस्सा नहीं बनता,
कभी विश्वास का तब तक कहीं रिशता नहीं बनता.

वो बादल क्यों न बन जाए, वो बारिश क्यों न हो जाए,
समंदर का रुका पानी मगर दरिया नहीं बनता.

अगर इंसान के दिल भी दरख़्तों की तरह होते,
परिंदों के लिए शायद कोई पिजरा नहीं बनता.

चमक तो एक दिन पत्थर में आ जाती है घिसने से,
मगर इस इल्म से पत्थर कभी शीशा नहीं बनता.

किसी तरतीव से ही शक्ल मिलती है लकीरों को,
लक़ीरें खींच देने से कोई नक़्शा नहीं बनता.

अगर संकल्प मन में हो तो जंगल क्या है दलदल क्या,
बिना संकल्प के कोई नया रस्ता नहीं बनता.

- अशोक रावत

Friday, 19 December 2014

हालात से हार मान जायें ऐसी उम्र-ए-जवानी तो नहीं

खिलखिलाती मुस्कुराहट के पीछे ग़म की कहानी तो नहीं
हालात से हार मान जायें ऐसी उम्र-ए-जवानी तो नहीं

दिल लाख अकेला ही सही इस दुनिया की भीड़ में
पर जिदंगी को ही गंवा देना ये जिदंगानी तो नहीं

जिंदा तो हैं हम सब पर जीस्त की कोई लज्जत नहीं
जिदंगी को जियो, आत्म-हत्या कायरता की निशानी तो नहीं

दिल में सवालों का बोझ हो तो पूछ कर हलका करो इस दिल को
दिल में सब रख कर जीना, यूं जीने में कोई आसानी तो नहीं

ऐ खुदा मेरी दुआ है सबको महफूज रखो किसी भी सितम से
जिदंगी तेरी देन है, 'ख्वाहिश' तुझसे कोई बात मुझे छुपानी तो नहीं

ख्वाहिश

Thursday, 18 December 2014

वो खफा हैं हमसे तो खफा ही रहने दो

वो खफा हैं हमसे तो खफा ही रहने दो
हमको उनको गुनाहगार ही रहने दो

वो समझते है कि हमने छोड़ दिया है उनको
बात तो झूठ है मगर सच ही रहने दो

मुद्दतों मांगी है खुदा से खुशियां उनकी
जो आता है इल्ज़ाम हम पे तो इल्ज़ाम ही रहने दो

उनकी शर्त है कि मैं बेवफा बनूं
अगर खुशी मिले उनको तो मुझे बेवफ़ा ही रहने दो

आयेगा वक्त तो दिखायेगें उनको अपने जख्म
अभी खामोश है हम तो खामोश ही रहने दो


-अज्ञात

बंदे को वह मिलता ही है, जिसका वो हकदार होता है

बंदे को वह मिलता ही है, जिसका वो हकदार होता है
देने के लिए मौला को सही वक्त का इन्तजार होता है

किसी के हिस्से मुफलिसी, किसी के हिस्से में ठाठ है
मौला मुंसिफ है बड़ा, वो न्याय का तरफदार होता है

अपनी करतूतों को याद कर पहले फिर कोस खुदा को
अपील में पलटता नहीं, उसका फैसला दमदार होता है

खुशी से ज्यादा आंसुओं में छिपे हैं बुलंदियों के पते
ये उनके नसीब में हैं, जिनसे मौला को प्यार होता है

एक ही मिट्टी से बनाता है वो न जाने कितने वजूद
कोई ‘मधु’ सा मामूली, कोई अन्ना सा खुद्दार होता है

-डॉ. मधुसूदन चौबे

Monday, 15 December 2014

वो दर्द दिल में है जिसकी दवा नहीं मालूम

मिला है क्या मुझे इसके सिवा नहीं मालूम
वो दर्द दिल में है जिसकी दवा नहीं मालूम

फरेब दे के मुझे मँजिलों पे जा पहुँचे
जो कह रहे थे हमें रास्ता नहीं मालूम

हर एक शख्स से मैं बेझिझक मिलूँ कैसे
तुम्हारे शहर की आबो हवा नहीं मालूम

मैं अपनी प्यास के सहरा में मुतमइन था मुझे
कहाँ बरस के गयी है घटा नहीं मालूम

खुदा मुआफ़ रखे उसको इस खता के लिये
उसे वफ़ा का अभी मर्तबा नहीं मालूम

यक़ीन उस पे किये जा रहा हूँ मैं 'शायर'
वो कब कहाँ मुझे देगा दगा नहीं मालूम

शायर देहलवी

Sunday, 14 December 2014

मैं तेरे सांचे में बिल्कुल ढलना नहीं चाहता

मैं तेरे सांचे में बिल्कुल ढलना नहीं चाहता
तू जैसा है अच्छा है तुझे बदलना नहीं चाहता

तू तू रहे, मैं मैं रहूँ और हम दोनों हम जो जाएँ
तुझे मिटाकर मैं जहां में बचना नहीं चाहता

आदमी हूँ इसलिए जुदा हूँ मैं कठपुतलियों से
उँगलियों के इशारों पर मैं चलना नहीं चाहता

तू मुझे प्रिय है, मैं भी तेरी धड़कनों में बसा हूँ
तेरी खुश्बुएं मिटाकर मैं महकना नहीं चाहता

अनंत आकाश है जहाँ तक उड़ सके उड़ 'मधु'
आज़ाद परिंदे मैं तेरे पर कतरना नहीं चाहता

-डॉ. मधुसूदन चौबे

Friday, 12 December 2014

दो राहें अलग हो जाने से कभी कोई जुदा नहीं होता

आज दिल बहुत बेचैन है मुनसीब समझो तो
बस इतना बता दो.....कही तुम उदास तो नहीं...!!
~~~~~~
जैसे के सिर्फ सर को झुका देना कभी सजदा नहीं होता
वैसे ही दो राहें अलग हो जाने से कभी कोई जुदा नहीं होता

किसी रंग-रूप में, कभी छाउ-धुप में बदल ही जाते हैं सब
सच कहते हैं लोग, "हालात बुरे होते हैं आदमी बुरा नहीं होता"

एक-एक लफ्ज़ सलीके से किताब-ए-दिल में उतारता हूँ मैं
कभी पूछो किसी शायर से,क्या-क्या उस के दिल मे छुपा नहीं होता

जहां जहां इंसान जाता है उस के हिस्से की वीरानी भी साथ जाती हैं
दुनिया की भीड़ में बहुत लोग मिलते हैँ पर हर कोई अपना नहीं होता

तुझसे मिलने की ख़ुशी फिर जुदा होने का मलाल साथ लिए चलता हूँ
सूना है दिल में गीले-शिकवे रख कर बिछड़ना कभी अच्छा नहीं होता

चेहरे से जो ज़ाहिर हो वो तो दुनिया भी जान जाती हैँ 'साहेब'........!!!!!
दिल के अंदर भी झाँक कर जो देखे,"ख्वाहिश" ऐसा कोई आइना नही होता

~~~~~ख्वाहिश~~~~~~~

Wednesday, 10 December 2014

चींखों को दबाया है

कुछ इसने कुछ उसने बखूबी रूलाया है
माँ की लोरियों ने बमुश्किल सुलाया है

गालों पर बनी हैं आंसुओं की पगडंडियां
इतिहास से पूछो ये कब मुस्कुराया है

आँखों में नहीं सजते रंगीन ख्वाब अब
कई वर्षों से आंसुओं ने घर बसाया है

फितुरी ज़माने ने जाने कैसे सुन लिया
मैंने तो हर संभव चींखों को दबाया है

दिल की बातें यहाँ कौन सुनता है ‘मधु’
झूठ ने सच को हर कदम पे हराया है


-डॉ. मधुसूदन चौबे 

Monday, 8 December 2014

तू कहीं अजनबी न हो जाए

डर है जिसका वही न हो जाए
तू कहीं अजनबी न हो जाए

दर्द औरों का गर समझने लगे
आदमी आदमी न हो जाए

चन्द ख़ुशियों से आशना हूँ मैं
रंज को आगही न हो जाए

मैं यही सोच कर हूँ चुप अब तक
बेसबब दुश्मनी न हो जाए

मौत के वक़्त देख कर उनको
ख़्वाहिशे ज़िन्दगी न हो जाए

शेर मेरे हैं जुगनुओं की तरह
बज्म़ में रौशनी न हो जाए

तुम भी लहज़ा बदल के बात करो
'शायर' ऐसा कभी न हो जाए

शायर देहलवी

असलियत को झुठलाने निकले

असलियत को झुठलाने निकले
काग़ज़ के फूल महकाने निकले

सूफ़ी निकले जोगी निकले जो भी निकले
सब ख़ुदको बहकाने निकले

मन में, बूढ़ी इमारतें दबी निकलीं
तैखानों में तैखाने निकले

गाँव से उस दिन शहर तो आ गये
पैर जमाने में ज़माने निकले

हम असलियत को झुठलाने निकले,,,

- शोमेश शुक्ला

Thursday, 4 December 2014

उजाले और उजाले के बीच अँधेरा आता है

उजाले और उजाले के बीच अँधेरा आता है
मंजिल की राहों .में कोहरा घनेरा आता है

असफलता लाती है अवसाद की सुनामियाँ
सपनीली आँखों के नीचे काला घेरा आता है

लक्ष्मण पर भी चल जाती है आसूरी शक्ति
जब कभी विपरीत वक्त का फेरा आता है

तभी चलता है नींव की मजबूती का पता
जलजले की जद में जब कोई बसेरा आता है

सुन, डूबा हुआ सूर्य फिर निकलता है ‘मधु’
काली रात के बाद चमकीला सबेरा आता है

-डॉ. मधुसूदन चौबे

Tuesday, 2 December 2014

दिल में हमेशा ज़िन्दा एक ख्वाब रखियेगा

दिल में हमेशा ज़िन्दा एक ख्वाब रखियेगा
चाहे कुछ भी हो उम्मीदों का सैलाब रखियेगा

आसमां को छू लेना एक दिन पर अभी वक्त है
पाँव जमीन पे रखना, खर्चों का हिसाब रखियेगा

तेरी खुशियों में दुनिया तेरा साथ देगी
मुश्किलों में अपनी सोच को लाजवाब रखियेगा

गमगीन चेहरे अपने पहचान खो देते हैं
जो पहचाने जाओ, खुद में ऐसी एक ताब रखियेगा

किसी रोते को गर तुम चुप करा सको तो ज़रूर करो
अपने दिल में इन्सानियत का जज़्बा बेहिसाब रखियेगा

तन्हा राहों में भी खुद को तन्हा न समझ
ख्वाहिश ऐसी सोच रख, खुद को कामयाब रखियेगा।

--- ख्वाहिश 

Monday, 1 December 2014

हर गम से मुस्कुराने का हौंसला मिलता है

हर गम से मुस्कुराने का हौंसला मिलता है
ये तो दिल है जो गिरता है तो कभी संभलता है

जलते दिल की रोशनी में ढूंढ लो मंजिल का पता
उस चिराग को देखो जो बड़े शौक से जलता है

इस दर्द भरी दुनिया में खुद को पत्थर बना डालो
वैसा दिल ना रखो जो मोहब्बत में पिघलता है

तुम समझ लेना उम्मीदों की शहनाई उसे
आह जब जब तुम्हारे दिल से निकलता है

किसी की याद सताये तो शाम का दिल देखो
जो अपनी सुबह के लिये कइ रंग बदलता है

जिंदगी चीज है जीने की जी लेते हैं 'दोस्तों'
लाख रोशनी हो मगर ये दिल कहां बहलता है?

-अज्ञात

Friday, 28 November 2014

क्या करुँ इस ख्वाहिश पे पहरेदार बैठे हैं

कुछ लोग सितम करने को तैयार बैठे हैं
कुछ लोग मगर हम पे दिल हार बैठे हैं,

इस कश्मकश में हमसे पहचाने नहीं जाते
कहाँ दुश्मन हैं और कहाँ दोस्त यार बैठे हैं,

इस इश्क को आग का दरिया समझ लीजिये हुजूर
कोई उस पार बैठा है तो हम इस पार बैठे है,

कौन कहता है कि इस शहर में सारे हैं बेवफा
हमारे सामने दो-चार वफादार बैठे है,

कल तक जिन की हसरत थी हमें बदनाम करने की
आज वही लोग अपने किये पे शर्मसार बैठे हैं,

दुनिया से रुठ जाने की ख्वाहिश है हमारी,
क्या करुँ इस ख्वाहिश पे पहरेदार बैठे हैं..

-अज्ञात

Thursday, 27 November 2014

अपना नया पता देना

हाथों को हाथों में थामकर हल्के से दबा देना
जो जुबाँ न कह पाये, वो इशारे से बता देना

दुवा में बैठा है कोई, अब कुबूल भी कर लो
अच्छा नहीं है इंतजार में किसी को थका देना

बादलों में छिपा हुआ चाँद अच्छा नहीं लगता
अपने चेहरे से जुल्फ़ों को झटक के हटा देना

न डरो कल के इश्क से तुम आज मेरी जाँ
लौटा दूंगा तुम्हारे खत अपना नया पता देना

जहाँ में वैसे तो कई जुर्म हैं बड़े संगीन ‘मधु’
नाकाबिले माफ़ गुनाह है किसी को दगा देना

डॉ. मधुसूदन चौबे

ज़्यादा सोचेंगे तो मुश्किल हो सकती है,

ज़्यादा सोचेंगे तो मुश्किल हो सकती है,
चलते रहिए मंज़िल हासिल हो सकती है.

तुमको जो करना हो पूरे मन से करना,
सारी दुनिया इस में शामिल हो सकती है.

एक लहर बन सकती है तूफान भी लेकिन,
एक लहर दरिया की साहिल हो सकती है.

होने को तो पत्थर दिल भी होंगे लेकिन,
पूरी दुनिया क्या प्त्थर दिल हो सकती है.

अशोक रावत

Sunday, 23 November 2014

बिना सोचे बिना समझे सभी बाहर निकल आए,

बिना सोचे बिना समझे सभी बाहर निकल आए,
ज़रा सी बात पर पत्थर फिके, ख़ंजर निकल आए.

जहाँ मुमकिन न हो दीवार को जड़ से गिरा देना,
दुआ करता हूँ उस दीवार में कोई दर निकल आए.

ज़रा सा और चलकर देखते हैं साथ में हम तुम,
हमारे सोच में कोई रास्ता बेहतर निकल आये.

ज़मीं के साथ रिश्ता था दरख़्तों का, कहाँ जाते,
परिंदे उड़ गए आकाश में जब पर निकल आए.

जो बैठे हैं बचा कर होश उन्हें रौनक मुबारक हो,
घुटन थी इसलिए महफ़िल से हम बाहर निकल आए,

हमें एक बार कम से कम कभी ऐसी खुशी भी दे,
नमक का ढेर खोदें और वहाँ शक्कर निकल आए.

अशोक रावत

Tuesday, 18 November 2014

क्या ज़रूरी कि हर इक बात पे रोया जाए

जब न 'मुद्दों' के सवालात पे रोया जाए।।
तब सियासत ! तेरी औक़ात पे रोया जाए ।।

क्या वही भूख़, वही चीख़, वही ज़ुल्म-ओ-सितम ?
चल ! किसी मज़हबी जज़्बात पे रोया जाए ।।

कर दिया उसके 'बड़ेपन' ने मेरा क़द बौना ।
ऐसी कमज़र्फ़-मुलाक़ात पे रोया जाए ।।

जेब में नोट, बड़ी कार, नया ऐ.सी. घर ।
अब चलो ! देश की हालात पे रोया जाए ।।

ज़िन्दगी, माना हंसाती है बहुत कम, लेकिन
क्या ज़रूरी कि हर इक बात पे रोया जाए ??

त्रिवेणी पाठक

Friday, 14 November 2014

खंजर से करो बात ना, तलवार से पूछो

खंजर से करो बात ना, तलवार से पूछो
मैं कत्ल हुआ कैसे, मेरे यार से पूछो

फर्ज़ अपना मसीहा ने अदा कर दिया लेकिन
किस तरह कटी रात ये बीमार से पूछो

कुछ भूल हुई हो तो सज़ा भी कोई होगी
सब कुछ मैं बता दूंगा, ज़रा प्यार से पूछो

आखों ने तो चुप रह के भी रूदाद सुना दी
क्यों खुल न सके ये लब-ए-इज़हार से पूछो

रौनक है मेरे घर में तस्व्वुर ही से जिस के
वो कौन था राही, दर-ओ-दीवार से पूछो

-- अज्ञात

यूँ तो सब कुछ ठीक है मुझसे ख़फ़ा कोई नहीं,

यूँ तो सब कुछ ठीक है मुझसे ख़फ़ा कोई नहीं,
पर मेरे एहसास में तेरे सिवा कोई नहीं,

याद फिर भी तू ही आता है मुझे हर मोड़ पर
जानता हूँ तुझसे मेरा वास्ता कोई नहीं.

इसलिए ख़ामोश रह के उम्र पूरी काट दी,
ज़िंदगी तुझसे बहस का फायदा कोई नहीं,

दोस्तों की बात है, किससे कहूँ और क्या कहूँ,
फोन तो आए गए, आया गया कोई नहीं.

ये नशा रफ़्तार का जाने कहाँ ले जाएगा,
आदमी को पीछे मुड़ के देखता कोई नहीं.


अशोक रावत

Tuesday, 11 November 2014

खुद को बदलना चाहता हूँ

बदलना चाहता हूँ,
जमाने की परवाह नहीं अब
बस खुद को ही
बदलना चाहता हूँ।

जमाने ने सिखाया क्या
क्या सीखा जमाने से
सब कुछ भूलकर अब
इक नई दुनिया में गुज़रना चाहता हूँ
खुद को बदलना चाहता हूँ.

उम्मीदों के दलदल से
भावनाओँ के जलज़ले से
अपने ही आप से
बस दूर निकलना चाहता हूँ
खुद को बदलना चाहता हूँ.

हर हकीकत से दूर
न किसी ख्वाब से मजबूर
किसी अजनबी दुनिया में
खुद को भुलाना चाहता हूँ
बस खुद को बदलना चाहता हूँ.

ये हंसना हँसाना किस लिए
युँ बेवजह मुस्काना किस लिए
उन यादों को छुपाना किस लिए
गमों को भूलने का बहाना किस लिए
कोई अपना कोई बेगाना किस लिए
जिन्दगी का ये फसाना किस लिए
औरों की हौसला दे तो दिए, पर
अपने ही अश्को को छुपाना किस लिए
कुदरत का किसी को बिछड़ना मिलाना किस लिए
जिन्हें हम याद नहीं, उनका याद आना किस लिए
सवाल ही सवाल, जवाब नहीं कोई
फिर इन बेकार सवालों का ज़हन में आना किस लिए
भावनाओं में कभी कोई मैल न हुआ मेरी, फिर अपनी ही
इन भावनाओँ से नफरतों का ज़माना किस लिए
ये मैं हूँ, या कोई और है, या मैं हू भी की नहीं हूँ
अपनी ही तालाश में खुद को यूँ भटकाना किस लिए

ये यादों का झोंका मुझे क्यों इतना झकझोर जाता है
संभाला है बड़ी मुश्किल से खुद को, इसे तोड़ जाता है
खुद को अब बस पत्थर दिल बनाना चाहता हूँ
हाँ अब मैं खुद बदल जाना चाहता हूँ।
बस बदलना चाहता हूँ।

-- I Doesn't Matter

उनीदी करवटों में रात जब बेचैन होती है

उनीदी करवटों में रात जब बेचैन होती है ।।
तेरे सपनों की सरग़ोशी मेरी पलकें भिगोती है ।।

सुरीले पल कभी जो साथ हमने गुनगुनाये थे ।
उन्हीं पर ज़िन्दगी अब बेसुरी सी उम्र ढोती है ।।

कभी जब प्यार का वो भूला-बिसरा गीत सुनता हूँ ।
'तेरे ओंठों की ख़ामोशी - मेरी आँखों में होती है ।।'

हैं इतने व्यस्त हम इस रोज़ के घाटे-मुनाफ़े में ।
न तेरा दर्द दुखता है, न मेरी पीर रोती है ।।

कभी फ़ुर्सत मिले तो झील के उस मोड़ पर मिलना !
जहां तू मुस्क़ुराती है तो मेरी सुबह होती है ।।


त्रिवेणी पाठक

Thursday, 6 November 2014

आज हूँ ख़ाली, किसी दिन फ़िर भरा हो जाऊँगा

आज हूँ ख़ाली, किसी दिन फ़िर भरा हो जाऊँगा ।।
आंच में तप कर अगर निकला - खरा हो जाऊँगा ।।

यक़ ब यक़ चलते बने - सारे तअल्लुक़ तोड़ कर ।
क्या लगा था ? चोट खा कर अधमरा हो जाऊँगा !!

तुम मुझे भी क्या समझते हो मियाँ - अपनी तरह !
आज हूँ कुछ और, कल कुछ दूसरा हो जाऊँगा ??

अब समंदर दो, कि दरिया दो, कि दो आँसू मुझे ।
ज़र्द पत्ता हूँ, भला कैसे हरा हो जाऊँगा ??

जज़्ब कर रक्खा है ख़ुद को रोटियों की फ़िक्र में ।
प्यार ने ग़र छू लिया तो बावरा हो जाऊँगा ।।

तुम अभी 'मुमताज़' बनने का हुनर तो सीख लो !
'ताज़' क्या सारा का सारा 'आगरा' हो जाऊँगा ।।

सोचता हूँ आज जी लूँ - ख्व़ाब जैसी ज़िन्दगी ।
एक दिन सच्चाइयों का मक़बरा हो जाऊंगा ।।

है अभी जो कुछ नमी-नर्मी - उसे महसूस लो !
वक़्त के हत्थे चढ़ा तो ख़ुरदरा हो जाऊँगा ।।


त्रिवेणी पाठक

Monday, 3 November 2014

जो करार कभी किया था वो करार नही रहा


जो करार कभी किया था वो करार नही रहा ।।
एक दूजे पर , हमें अब , एतबार नही रहा ।।

प्यार अब भी है उसे मुझसे मुझे उससे मगर।।
दरमियां जो था हमारे अख्तियार नही रहा ।।

शौक तो उसने जवानी के रखें हैं सब मगर ।।
बस, बुढापे में जवानी का ख़ुमार नही रहा ।।

बेख़याली है ,मगर क्यूं है , बताओ तुम मुझे ।।
क्या हुआ ये आज क्या मैं बेकरार नही रहा ।।

टूटते रिश्ते , हमें किस मोड़ , पर लाये ख़ुदा ।।
अब किसी को भी किसी का इंतजार नही रहा ।।

नरेन्द्र शेहरावत

Sunday, 26 October 2014

क्यों है

आँखों में डर और चेहरे पे पसीना क्यों है
अगर यही है जीना तो फिर जीना क्यों है

तू बैठा है घर, वो आसमां पर पहुंच गया
फिर न पूछना तू मिट्टी वो नगीना क्यों है

जर्रे जर्रे में है जब जहाँ को बनाने वाला
फिर जग में एक काशी एक मदीना क्यों है

एक सांवला चाँद उगने ही वाला था छत पे
वक्त ने ये ख्वाब देकर फिर छीना क्यों है

हर फल पकने से पहले सड़ जाता है ‘मधु’
मेरे लिए ही ये भाग्य सदा कमीना क्यों है

-डॉ. मधुसूदन चौबे

Saturday, 25 October 2014

अगर चाहो मिटाना तो मिटा दो मुझको

बस ये हसरत है कि दामन की हवा दो मुझको
फिर अगर चाहो मिटाना तो मिटा दो मुझको

शमअ की तरहां मैरे पहलु में पिघलो तो सही
अपनी क़ुर्बत की तपिश देके ही जला दो मुझको

ख़त्म क़िस्सा ये करो या तो मेरी जाँ लेकर
राह जीने की नई या के बता दो मुझको

टूट जाये ये मेरी तुम से सभी उम्मीदें
आज मौक़ा है चलो कोई दग़ा दो मुझको

ज़ख़्म सब भरने लगे जीना हुआ मुश्किल सा
करके ईजाद सितम कोई नया दो मुझको

तुमसे वाबस्ता अगर ग़म है मुझे प्यारे हैं
कब कहा मैंने मसर्रत की दुआ दो मुझको

तुमसे करता तो है इज़हारे तमन्ना बिस्मिल
देखो ऐसा न हो नज़रों से गिरा दो मुझको

**(( अय्यूब ख़ान "बिस्मिल"))**

Tuesday, 21 October 2014

ज़ख़्म दानिश्ता मैंने खाया था

दिल ये तुझसे अगर लगाया था
ज़ख़्म दानिश्ता मैंने खाया था

इन्तेहाँ देख ज़ब्त की मैरे
ज़ख़्म खाकर भी मुस्कुराया था

मुझको अपनों का था गुमाँ जिस जाँ
तीर भी उस तरफ से आया था

मुझको हैरत है मैरा दुश्मन ही
वक़्ते गर्दिश में काम आया था

दर्द का नोहा वो बना आखिर
जो मसर्रत का गीत गाया था

दर्द की इन्तिहाँ परखने को
मैंने ख़ुद को ही आज़माया था

हर सफ़र आसां हो गया बिस्मिल
साथ माँ का जो मैरे साया था

अय्यूब ख़ान "बिस्मिल"

Monday, 13 October 2014

ख़ुश्क पत्ते थे हवा से झर गए,

ख़ुश्क पत्ते थे हवा से झर गए,
आँधी समझी पेड़ उससे डर गए.

यूँ समझिए मर गया जिनका ज़मीर,
नाम के ज़िंदा हैं वरना मर गए.

याद जब उसको किया तो ख़ुदब ख़ुद,
रूह तक हम रौशनी से भर गए.

दुश्मनों से फिर भी है कुछ राबिता,
दोस्त तो कब का किनारा कर गए.

- अशोक रावत

Sunday, 12 October 2014

झेले हैं जलजले सीने पर फूलों की तरह

झेले हैं जलजले सीने पर फूलों की तरह
जीवन जिया है गीता के उसूलों की तरह

दुश्मनों का तो खैर काम ही है जान लेना
दोस्त रहे मेरी सबसे बड़ी भूलों की तरह

फेहरिश्त बहुत बड़ी है भूतपूर्व दोस्तों की
आते जाते रहे सावन के झूलों की तरह

इक बार जुदा हुए तो फिर मिल न सके
दो किनारों के बीच टूटे हुए पूलों की तरह

यहाँ पर फूटफूटकर रोना लाजमी है ‘मधु’
तुम्हारे दिए फूल चुभते हैं शुलों की तरह

मधूसूदन चौबे

बदल जाते हैं

मंजिलों के पास जा कर अक्सर, रास्ते बदल जाते हैं
सफर में जिदंगी के अक्सर हमसफर बदल जाते हैं

साहिलों के पास जा कर अक्सर डूबती है कश्तियाँ
लहरों को क्या दोष दें जब मंजर ही बदल जाते हैं

जब तक करीब हैं, तब तक अपनों को अपने मनाते हैं
फ़ासलों के बढ़ जाने से, सारे अपने बदल जाते हैं

वो रिश्तों का बंधन, जो कभी अटूट हो जाता है
कुछ वक्त के बाद क्यूं वो रिश्ते ही बदल जाते हैं

हर वो चीज, जिस से मोहब्बत हो खुद से भी ज्यादा
वक्त के साथ हर उस चीज के मायने बदल जाते हैं

जिन ख्वाबों को आँखों में सजाकर, जागते हैं हम
क्यूं जिदंगी के साथ हर वो ख्वाब बदल जाते हैं

क्या दोष दे उस इंसान को, जिसे भगवान ने बनाया
इंसान क्या चीज है, खुद भगवान बदल जाते हैं

--अज्ञात

Friday, 10 October 2014

सितम भी करता है, हाथ मिला भी देता है

सितम भी करता है, हाथ मिला भी देता है
फिर मेरे हाल पे वो मुस्कुरा भी देता है

मैं जब लड़ता हूँ लहरों से, वो देखता रहे
फिर डुबते हुए को बचा भी देता है

खुद बनता है कभी मेरी राह में दीवार...
तो कभी अपने आप से नई राह दिखा भी देता है

कागज पर मेरा नाम लिख-लिखकर जो रोता रहे
देखने पर, मेरा नाम कागज से मिटा भी देता है

अपने दर्द-ओ-रंज से मुझे रखता है कोसो दूर...
तो कभी छोटी-छोटी बातों से मुझे रुला भी देता है

अनकहे लफ्जों में मतलब ही ढूँढता रहता है कभी
और कभी मेरी कही हुई बातों को वो भुला भी देता है

मुझे देता है हौसँला मुश्किलों में भी मुस्कुराने का और खुद कभी
किसी रोते हुए को देख कर अश्क आँखों से बहा भी देता है

फिर कभी थक-टूटकर कहता है कि मैं हार गया हूँ ,
तो कभी उम्मीद की एक नई शमा दिल में जगा भी देता है

- अज्ञात

Thursday, 9 October 2014

आँख में कोई सितारा हो जरुरी तो नहीं

आँख में कोई सितारा हो जरुरी तो नहीं
प्यार में कोई हमारा हो जरुरी तो नहीं,

ये हकीकत है कि मुझे उससे मोहब्बत है
पर उसी के साथ हो गुजारा जरुरी तो नही,

ये मेरे दर से जो फूलों की महक आती है
ये उसके आने का इशारा तो नही,

डुबते वक्त की नजर उसपे भी तो पड़ सकती है
सामने मेरे किनारा हो जरुरी तो नही,

कम नहीं ये भी कि है ये शहर हमारा लेकिन
शहर में कोई हमारा हो ये जरुरी तो नही,

हो सकती है खता उसका निशाना ए दोस्तों
तीर उसने मुझे मारा हो ये जरुरी तो नहीं..


- अज्ञात

Tuesday, 7 October 2014

पलकों पे आंसूओं को सजाया ना जा सका

पलकों पे आंसूओं को सजाया ना जा सका
उनको दिल का हाल बताया ना जा सका

जख्मों से चूर-चूर था ये दिल मेरा
एक जख्म भी उनको दिखाया ना जा सका

कुछ लोग जिंदगी में ऐसे भी आयें हैं
जिन को किसी भी लम्हें भुलाया ना जा सका

बस इस ख्याल से कहीं उनको दुख ना हो
हम से तो हाल-ए-दिल भी सुनाया ना जा सका

वो मुस्कुराता था मेरे रुबरु मगर
चेहरे का रंग उनसे छुपाया भी ना जा सका

तन्हाइयों की आग में हम जल गये
मगर फ़ासला उनका मिटाया ना सका

-- अज्ञात

Wednesday, 24 September 2014

छोड़ आया हूँ

जिन राहों में तूने बिछाए थे कांटे,
उन राहों में मैं फूल छोड़ आया हूँ.

जहाँ छोड़े थे तूने अपने कदमो के निशान,
उन राहों में अपना दिल छोड़ आया हूँ.

कभी जिस हवा ने उड़ाया था तेरा आँचल,
उन हवाओं का मैं रुख मोड़ आया हूँ.

जो ख्वाब रातों में आके तुझको डराते थे,
उन ख्वाबों को हकीकत से लड़ने छोड़ आया हूँ.

तेरी जो मुस्कान खो गयी थी लम्बे अरसे से,
बीते वक़्त में जाकर उसको ढूंढ आया हूँ.

जो यादें ज़ख्म बनकर दुखाती हो तडपती हो,
उन यादों को वर्तमान के समंदर में छोड़ आया हूँ.

मेरी खुश्क आँखों पर यूं शक न कर " बेताब"
अपने आंसू मैं अश्कों के समंदर मैं छोड़ आया हूँ,

----------बेताब--------------

Tuesday, 23 September 2014

सिर्फ रो देने से जिदंगी में गुजारा नहीं होता


सिर्फ रो देने से जिदंगी में गुजारा नहीं होता 
कोइ इतना भी मजबूरियों का मारा नहीं होता

हालात अक्सर बदलते रहते है इंसान के
खुदा के अलावा कोइ किसी का सहारा नहीं होता

दर्द-ओ-ग़म से कभी कुछ भी नहीं हासिल
हर कश्ती के तक़दीर में किनारा नहीं होता

मुसाफिर हूँ चलता रहता हूँ हर हाल में
ना रुकता कभी, अगर किसी ने पुकारा नहीं होता

मुझसे मेरी तन्हाइ ना छीनों तुम, खुदा के लिये
हर तन्हा रहने वाला इंसान आवारा नहीं होता

'ख्वाहिश' दिल में समुदंर की गहराई रखता है....
वो ख़ाक लिख पायेगा जो दर्द का मारा नहीं होता


-- ख्वाहिश

Saturday, 20 September 2014

कहानी ये है मेरे सोच में ईमान रहता है,

कहानी ये है मेरे सोच में ईमान रहता है,
नतीजा ये है मेरा घर सदा वीरान रहता है,

जहाँ सब लोग रहते है उसी बस्ती में रहता हूँ,
मगर कुछ इस तरह जैसे कोई अनजान रहता है.

जहाँ पर आदमी की हैसियत बँगले की साइज़ हो,
वहाँ पर कौन ये सोचे, कहाँ इन्सान रहता है.

मुसीबत सिर्फ़ इतनी है, वहाँ पर मैं नहीं जाता,
मुझे मालूम है भाई कहाँ भगवान रहता है.

निराला, सूर,तुलसी,भी हैं मेरे सोच में लेकिन,
इन्हीं के साथ ग़ालिब मीर का दीवान रहता है

किसी को क्या बचाएंगे, किसी से क्या निभाएंगे,
कि जिनके सोच में बस फ़ायदा नुकसान रहता है.

हमें भी चाहिए भाई, सड़क, बिजली, हवा, पानी,
मगर इन हुक्मरानों को कहाँ ये ध्यान रहता है.

- अशोक रावत

उसके बग़ैर ये शहर बड़ा गरीब लगता है

वो एक शख्स मुझे अपने क़रीब लगता है
खुद से करूँ जुदा तो अजीब लगता है

ये बेक़रारी, ये बेचैनी, ये कशिश कैसी
उसका मिलना मुझे अपना नसीब लगता है

कभी मीठी सी बातें, कभी हर बात पे झगड़े
ये याराना बड़ा दिलचस्प, बे-तरतीब लगता है

मोहब्बत की मंज़िल का पता न मिल सके फिर भी
कई सदियों का रिश्ता ये मेरे हबीब लगता है

उसके होने से जो सज जाती हैं महफ़िलें 'मीना'
उसके बग़ैर ये शहर बड़ा गरीब लगता है

-- 'मीना'

मत पूछ

कितनी मुश्किल से कटी कल की रात, मत पूछ
दिल से निकली हुई होठों में दबी बात, मत पूछ..

वक्त जो बदले तो इंसान बदल जाते हैं
क्या नहीं दिखलाते गर्दिश-ए-हालात, मत पूछ..

वो किसी का हो भी गया और मुझे खबर भी ना हुई
किस तरह उसने छुड़ाया है मुझसे हाथ, मत पूछ..

इस तरह पल में मुझे बेगाना कर दिया उसने
किस तरह अपनों से खाई है मैनें मात, मत पूछ..

अब तेरा प्यार नहीं है तो सनम कुछ भी नहीं
कितनी मुश्किल से बनी थी दिल की कायनात, मत पूछ..

-------अज्ञात

ये दिल कुछ और समझा था

वो जज्बों की तिजारत थी, ये दिल कुछ और समझा था
उसे हँसने की आदत थी, ये दिल कुछ और समझा था

मुझे उसने कहा, आओ नई दुनिया बसाते हैं 
उसे सुझी शरारत थी, ये दिल कुछ और समझा था

हमेशा उसकी आँखों में धनक के रंग होते थे 
ये उसकी आम आदत थी, ये दिल कुछ और समझा था

वो मेरे पास बैठी, देर तक ग़जलें सुनती 
उसे खुद से थी मोहब्बत, ये दिल कुछ और समझा था

मेरे कधें पर सिर रख कर कहीं पर खो जाती थी वो
ये एक वक्ती ईनायत थी, ये दिल कुछ और समझा था

मुझे वो देख कर अक्सर निगाहें फेर लेती थी
ये दर परदा हकारत थी, ये दिल कुछ और समझा था

-अज्ञात

Friday, 19 September 2014

फ़लक से चाँद तारे तोड़ लाऊं तो क्या बात हो

फ़लक से चाँद तारे तोड़ लाऊं तो क्या बात हो
तुम मुझे देख कर मुस्कुराओ तो क्या बात हो

ये बात मैनें कभी कही ही नहीं किसी से अब तलक
तुम ये बिना कहे ही समझ जाओ तो क्या बात हो

चाँद रात में भी घर मेरा रोशन नहीं होता
कभी तुम यहां से भी गुजर जाओ तो क्या बात हो

जमाने भर से छुप कर देखता हूँ तुम्हें मैं
तुम इस राज से खुद परदा हटाओ तो क्या बात हो

कभी तुमसे कह नहीं सका 'अब्रार' कि मोहब्बत है
तुम बस इस कलाम से समझ जाओ तो क्या बात हो

-----अब्रार-----

Sunday, 14 September 2014

उछलता जा

पगडंडियों को राजमार्ग में बदलता जा
पदचिह्न बनाने को दृढ़ता से चलता जा

जमाने की चोटें कुछ न बिगाड़ पायेंगी
वक्त की आग में इस्पात सा ढलता जा

ये अँधेरे अभी भाग जायेंगे दूम दबाकर 
तू प्रखर दीपशिखा बनकर सुलगता जा

तान सीना और कर आकाश मुट्ठी में 
बस माँ-बाप के क़दमों में झुकता जा 

देर करने पर मंजिल रूठ जाती है ‘मधु’
बैठ मत, उठ, दौड़ता और उछलता जा 

- Dr. Madhusudan Choubey

Saturday, 13 September 2014

खा जाये अगर सब्र को हालात तो फिर क्या होगा

खा जाये अगर सब्र को हालात तो फिर क्या होगा?
ना समझ सके गर कोई दिल के जज्बात तो फिर क्या होगा?

दोस्ती हो जाये तूफानों से और हाथ ना आये किनारे तो गम नहीं,
पर अगर तूफान भी ना निभा सके अपना साथ तो फिर क्या होगा?

अच्छा ही है कि दोनों की राहें अलग-अलग हैं..
पर किसी मोड़ पर फिर हो जाये उनसे मुलाकात तो फिर क्या होगा?

हर नई सुबह मुसाफिर के लिये नई उम्मीदें ले आती है पर...
अगर खत्म ना हो वो दर्द की काली रात तो फिर क्या होगा?

हाथ थाम कर युँ ही साथ चलो हमारे तो ये सफर मुकम्मल हो
पर जहां हो सवालात ही सवालात तो फिर क्या होगा?

'ख्वाहिश' वैसे तो तन्हा रह कर भी कभी तन्हा नहीं पर...
भरी महफिल में अगर हो अश्कों की बरसात तो फिर क्या होगा?

-ख्वाहिश

चाहो मिटाना तो मिटा दो मुझको

बस ये हसरत है कि दामन की हवा दो मुझको
फिर अगर चाहो मिटाना तो मिटा दो मुझको

शमअ की तरहां मैरे पहलु में पिघलो तो सही
अपनी क़ुर्बत की तपिश देके ही जला दो मुझको

ख़त्म क़िस्सा ये करो या तो मेरी जाँ लेकर
राह जीने की नई या के बता दो मुझको

टूट जाये ये मेरी तुम से सभी उम्मीदें
आज मौक़ा है चलो कोई दग़ा दो मुझको

ज़ख़्म सब भरने लगे जीना हुआ मुश्किल सा
करके ईजाद सितम कोई नया दो मुझको

तुमसे वाबस्ता अगर ग़म है मुझे प्यारे हैं
कब कहा मैंने मसर्रत की दुआ दो मुझको

तुमसे करता तो है इज़हारे तमन्ना बिस्मिल
देखो ऐसा न हो नज़रों से गिरा दो मुझको

अय्यूब ख़ान "बिस्मिल

टूट जाता है

हल्के से झटके में भरभराकर टूट जाता है 
कांच का पुतला है टकराकर टूट जाता है

यूँ तो अडिग रहता है जमाने के तूफानों में 
अपनों की ठेस से लहराकर टूट जाता है

प्रतिमा पर अर्पित करता है मन का नैवेध्य 
आशीष न मिले तो उकताकर टूट जाता है

कहाँ पीछे हटा वो जिंदगी की जंग से पर 
आस्तीन के सांप से घबराकर टूट जाता है

जब भी लोग हंसे तब तब हौंसला बढ़ा ‘मधु’
वक्त करे मजाक तो मुस्कुराकर टूट जाता है

- Dr. Madhusudan Choubey

खुद को ही खुद से जुदा कर गये,

खुद को ही खुद से जुदा कर गये,
इस कदर हम किसी से वफा कर गये.

उम्मीद थी जिन से जिदंगी की मुझे,
वो ही मेरी हस्ती को फना कर गये.

मैंने उसे चाहा उस से कुछ नहीं,
फिर ना जाने क्यों वो दगा कर गये.

ना मेरा प्यार कम हुआ ना उस की नफरत,
अपना अपना फर्ज था दोनों अदा कर गये.

सजा मिली दिल लगाने की तो एहसास हुआ,
मुहब्बत की कैसी हम खता कर गये.

-- Unknown

Thursday, 28 August 2014

मुझे इजाज़त दे... मुझे इजाज़त दे

हूँ लाख ज़हन का आज़ाद क्या है मेरे पास
सिवाए दिल-ए-बर्बाद क्या है मेरे पास
तुझे सुनाने को रुदात क्या है मेरे पास
के तुझसे इश्क की बुनियाद क्या है मेरे पास

कि मेरे साथ कोई हम मिज़ा़ज भी तो नहीं
कि दसतरस मे मिरी मेरा आज़ भी तो नहीं
कि मेरे कब्ज़े में मेरा समाज भी तो नहीं
कि मेरे पास कोई तख्त-ओ-ताज़ भी तो नहीं
मैं तुझको मांग लूं ऐसा रिवाज़ भी तो नहीं

गिला नहीं है मुकद्दर की नारासाई से
तुझे बचाउँगा इल्ज़ामे बेहयाई से
मैं लड़ ना पाउंगा इतनी बड़ी खुदाई से
मैं तुझको चाहुँगा जस्बों की पारसाई से

मैं अपने होठों की बेरंग रौशनाई से
तेरे लबों पे मुहब्बत का लफ्ज़ लिख दूंगा
मुझे इजाज़त दे... मुझे इजाज़त दे

- Unknown

Saturday, 23 August 2014

रहूँ जब दूर तुझसे मै तो दिल दिल सा नहीं रहता

रहूँ जब दूर तुझसे मै तो दिल दिल सा नहीं रहता
किसीकी फिर ख़बर क्या हो पता अपना नहीं रहता

तिरी क़ुरबत के जलवो से हे रौशन ज़िन्दगी मेरी
तसव्वुर में न हो जो तू तो कुछ जलवा नहीं रहता

बनाया है तेरी यादों को जब से हम सफ़र मैंने
मुझे तुझसे बिछड़ने का कभी ख़तरा नहीं रहता

रहूँ जिस हाल में लेकिन उसूलो से नहीं हटता
उसूलो की तिजारत में कभी घाटा नहीं रहता

ज़माने से भी अब उम्मीद क्या रखना मियाँ बिस्मिल
ज़ियादा देर तक अपना यहाँ साया नहीं रहता

**((अय्यूब खान "बिस्मिल"))**

खुशियों के चार पल ही ढूँढता रहा

खुशियों के चार पल ही ढूँढता रहा 
क्या ढूँढना था मुझको, मैं क्या ढूँढता रहा

अमीरों के शहर में मुझ सा गरीब शख्स 
लेने को साँस, थोड़ी हवा ढूँढता रहा

मालुम था कि मेरी नहीं है कोई खता
फिर भी मैं वहाँ अपनी खता ढूँढता रहा

मालुम था कि मुझ को नहीं मिल सकेगा वो
फिर भी मैं सदा उसका पता ढूँढता रहा

फिर यूँ हुआ कि उससे मुलाकात हो गई
फिर उम्र भर मैं, अपना पता ढूँढता रहा 


- Unknown

Sunday, 17 August 2014

कुछ कह नहीं सकता

बेनाम मुसाफिर हूँ, बेनाम सफर मेरा 
किस राह निकल जाऊँ, कुछ कह नहीं सकता

बेनाम मेरी मंजिल है, बेनाम मेरा ठिकाना है 
किस दर मैं रुक जाऊँ, कुछ कह नहीं सकता 

इस पार तो रोशन है सारा मेरा रास्ता 
उस पार अंधेरा हो, कुछ कह नहीं सकता 

तिनके की तरह मैं भी बह जाऊँ संमदर में
या मिल जायेगा किनारा, कुछ कह नहीं सकता 

मिल जायेगी ताबीर मेरी ख्वाबों की एक दिन 
या ख्वाब बिखर जायेगें, कुछ कह नहीं सकता 

- Unknown

रात की तन्हाईयों में, सब रंग बदल गये हैं

रात की तन्हाईयों में, सब रंग बदल गये हैं
चाँद निकला है वैसे ही, अंधेरे बदल गये हैं

जिन के भरोसे थीं खुशियाँ, वो बादल ठहर गये है
मंजिले तो अब भी वही है, कुछ रास्ते बदल गये हैं

जिनपे था भरोसा हमें, वो दोस्त बिछड़ गये हैं
देखे थे जो ख्वाब हमने, वो ख्वाब बदल गये हैं..

जो बने थे कभी हमसफर, आज वो ही मुकर गये है
इस टूटे हुए दिल के, सारे जज्बात बदल गये हैं..

ना बदले कभी हम, ना बदले हमारे ख्यालात
बस रोना है यही दोस्तों, कुछ लोग बदल गये हैं..

-- Unknown

ज़र्फ को और भी सिवा रखना, रू ब रू जब भी आइना रखना

ज़र्फ को और भी सिवा रखना
रू ब रू जब भी आइना रखना

जिसके फूलों में हो वफ़ा की महक
उस शजर को हरा भरा रखना

जो भी शिकवा हो मुझसे कह दीजे
ऐसी बातों को दिल में क्या रखना

जिनके लहज़े में चाशनी हो बहुत
ऐसे लोगों से फासला रखना

ऐसी हालत में गैर मुम्किन है
याद कुछ भी तिरे सिवा रखना

मेरी फितरत भी है जरूरत भी
अपने लहज़े को खुरदरा रखना

तुम चिराग़ो इन्ही से ज़िन्दा हो
इन हवाओं से राबिता रखना

गुफ्तगू जब किसी से हो 'शायर'
अपना लहज़ा नपा तुला रखना

 शायर * देहलवी 

Saturday, 9 August 2014

पड़ा न फ़र्क़ अनोखी ज़ुबान लिखने से

पड़ा न फ़र्क़ अनोखी ज़ुबान लिखने से
ज़मीं, ज़मीं ही रही आसमान लिखने से

रहा जिस से तआल्लुक़ हर घडी मेरा
वो बन सका न मेरी जान "जान" लिखने से

पनाह मिल न सकी एक पल कभी मुझको
किसी उजाड़ जगह को मकान लिखने से

कड़ी तपिश से झुलसता रहा बदन मेरा
के धूप, धूप रही सायेबान लिखने से ...!!!

- अज्ञात

Saturday, 2 August 2014

आहिस्ता चल ज़िन्दगी, अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है,

आहिस्ता चल ज़िन्दगी, अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है,
कुछ दर्द मिटाना बाकी है, कुछ फ़र्ज़ निभाना बाकी है;

रफ्तार में तेरे चलने से कुछ रूठ गए, कुछ छुट गए ;
रूठों को मनाना बाकी है, रोतो को हसाना बाकी है ;

कुछ हसरतें अभी अधूरी है, कुछ काम भी और ज़रूरी है ;
ख्वाइशें जो घुट गयी इस दिल में, उनको दफनाना अभी बाकी है ;

कुछ रिश्ते बनके टूट गए, कुछ जुड़ते जुड़ते छूट गए;
उन टूटे-छूटे रिश्तों के ज़ख्मों को मिटाना बाकी है ;

तू आगे चल में आता हु, क्या छोड़ तुजे जी पाऊंगा ?
इन साँसों पर हक है जिनका , उनको समझाना बाकी है ;

आहिस्ता चल जिंदगी , अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है ।

- Unknown

Saturday, 26 July 2014

तेरे झूठ को झूठ मान लिया तो मर जाउँगा

तेरे झूठ को झूठ मान लिया तो मर जाउँगा
इकलौता भरोसा भी टूटा तो किधर जाउंगा

मुँह के बल गिरा न जारे कितना दर्द सहा
हर ठोकर पर सोचा, अबके मैं सुधर जाउँगा

कैसी तासीर बन गयी की बदलती ही नहीं,
बदला तो खुद की निगाहों से उतर जाउंगा

भाग रहा हूँ अपने साये से दूर होने के लिए
वो ही आवाज़ आयी अगर तो ठहर जाउंगा

बैठा हूँ मैं तेरी यादों के साथ अकेला मधु
आँखे खाली हो जाए तो फिर मैं घर जाउंगा

- मधूसूदन चौबे

कुछ पल थम जाए और फिर जारी है जीन्दगी

दुनिया में युं भी हमने गुज़ारी है जिन्दगी
किश्तों में मिली जैसे उधारी है जीन्दगी

अपना चेहरा भी आइने में मुझे अपना न लगे
किस कदर खुद को बदल कर सवांरी है जिन्दगी

हमसे न पूछों किस-किस दौर से गुज़रे हैं हम
जीते कभी तो कभी खुद ही हारी है जीन्दगी

कभी दुख, कभी सुख, हर एक मौसम है यहा
इम्तेहानों से लडते रहने की तैयारी है जीन्दगी

माँ - बाप की दुआएँ हर मुश्किल आसां करती है
माँ की ममता के जैसे ही कभी प्यारी है जीन्दगी

किसी के रुक जाने से वक्त नहीं रुकता ख्वाहिश
कुछ पल थम जाए और फिर जारी है जीन्दगी

- ख्वाहिश

हम के ठहरे अज़नबी इतनी मदारातों के बाद

हम के ठहरे अज़नबी इतनी मदारातों के बाद
फिर बनेंगे आश़ना कितनी मुलाकातों के बाद

कब नज़र में आएगी बेदाग सब्ज़े की बहार
खून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद

हम के ठहरे अनबी इतनी मदारातों के बाद

दिल तो चाहा पर शिकश्त-ए-दिल ने मोहलत ही न दी
कुछ गिले-शिकवे भी कर लेते मुनाज़ातों के बाद

हम के ठहरे अनबी इतनी मदारातों के बाद

थे बहुत बेदर्द लम्हें खत्म-ए-दर्द-ए-इश्क के
थी बहुत बेमहर सुबहें, मेहरबां रातों के बाद

हम के ठहरे अनबी इतनी मदारातों के बाद

उनसे जो कहने गे थे फैज़ जाँ सदका किये
अनकही ही रह गयी वो बात सब बातों के बाद

हम के ठहरे अज़नबी इतनी मदारातों के बाद
फिर बनेंगे आश़ना कितनी मुलाकातों के बाद

Sunday, 20 July 2014

ग़म देर तक रुका है हर एक खुशी से पहले

ग़म देर तक रुका है हर एक खुशी से पहले
हाँ कुछ तो होश था हमें इस बेखुदी से पहले

ये वक़्त का जादू है किस को न बदल डाले
इंसान एक बना था इस आदमी से पहले

इस खेल में किसी का मुक़द्दर न डूब जाए
थोडा था सोचा करिए एक दिल्लगी से पहले

ख्वाबों का आशियाँ क्यूँ कर सजाये कोई
सामान ए मौत हाज़िर है ज़िंदगी से पहले

-- अज्ञात

सब कुछ है पास में, फिर भी एक कमी रह गई

गम-ए-आरजू तेरी राह में, श़ब-ए-आरजू तेरी चाह में,
जो उज़ड़ गया वो बसा नहीं, जो बिछड़ग या वो मिला नहीं

सब कुछ है पास मेरे फिर भी एक कमी रह गई
मैं मुस्कुरा रहा था और आँखों में नमी रह गई

कभी तय ना कर सका के क्या रिश्ता है तेरा मेरा
तू अनमोल है मेरे लिए, मेरी ही कीमत लगी रह गई

हर बार तुझ से मिलकर बिछड़ने का डर क्यों
क्या यही जुदाई तकदीर में मेरे ही लिखी रह गई

बे-इख्त्यार उठे हैं मेरे कदम यहाँ वहां
मेरी मंजिल मेरी ही नज़रों से कहीं छिपी रह गई

ये कुछ पन्ने आ भी फूलों की तरह महकते हैं
तेरे नाम की सियाही इन पन्नों में जो बसी रह गई

चांद की जुदाई में आसमान भी जरूर तड़पता होगा
बात उसके दिल की, दिल में ही कहीं दबी रह गई

क्या बताउँ किसी को, कैसे समझाउँ किसी को
तू जाए तो मेरी नज़रें तुझे ही देखती रह गई

ख्वाहिश तुझे कभी अलविदा न कह पाएगा
ये कहते वक्त सांसे मेरी, जैसे रुकी रह गई

सब कुछ है पास में, फिर भी एक कमी रह गई

-- ख्वाहिश

हर ग़म से मुस्कुराने का हौसला मिलता है

हर ग़म से मुस्कुराने का हौसला मिलता है
ये तो दिल है जो कभी गिरता है तो कभी संभलता है

जलते दिल की रोशनी में ढूंढ लो मंजिल का पता
उस चिराग को देखो जो बड़े शौक से जलता है

इस दर्द भरी दुनिया में खुद को पत्थर बना डालो
वैसा दिल ना रखो जो मोहब्बत में पिघलता है

तुम समझ लेना उम्मीदों की शहनाई उसे
आह जब-जब तुम्हारे दिल से निकलती है

किसी की याद सताये तो शाम का दिल देखो
जो अपनी सुबह के लिये कई रंग बदलता है

जिदंगी चीज है जीने की जी लेते हैं 'दोस्तों'
लाख रोशनी हो मगर ये दिल कहां सभंलता है

-- अज्ञात

दिल जब घबराए तो खुद को एक किस्सा सुना देना

दिल जब घबराए तो खुद को एक किस्सा सुना देना
जिन्दगी कितनी भी मुश्किल क्यों न हो, मुस्कुरा देना

आसानी से सब कुछ हासिल हो तो उसकी कदर कहाँ
ज़रूरी है कुछ पाने के लिए कुछ गवाँ देना,

ज़ाहिर है मुसिबतों में साथ कोई अपना नहीं रहता
चुप रहना बेशक आँख से एक कतरा अश्क बहा देना

शिकायतें सिर्फ दिल मैला करती हैं और कुछ नहीं
आसान है गले मिल कर कभी सब कुछ भुला देना

बीते हुए दौर की बातें याद कर क्या हांसिल प्यारे
क्या ज़रूरी है कल की याद में अपने आज को सज़ा देना

कुछ कमियां हम सब में है, ये जानते हैं हम
बहुत बड़ी बात है, किसी के ऐब को बे-वजह छुपा देना

है दुनियां में सुखनवर और भी बहुत अच्छे ख्वाहिश
काश कोई ऐसा लिखे के दिल से दिल, सबके मिला देना

ख्वाहिश

Thursday, 3 July 2014

जुदा होने के मौसम में जुदा होना भी पड़ता है

जुदा होने के मौसम में जुदा होना भी पड़ता है
जिसे मुश्किल से पाया हो उसे खोना भी पड़ता है

खुद पे मान इतना है कभी मुड़ कर नहीं देखा
जिसे कह दूँ कि मेरा है, उसे होना भी पड़ता है

मुझे नींद नहीं आती उसकी याद आने के बाद
मगर एक ख्वाब के लालच में फिर सोना भी पड़ता है

हमेशा हँसते रहता हूँ छुपा के ग़म मोहब्बत के
मगर जब उसका नाम आये तो रोना भी पड़ता है

- अज्ञात

चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया

चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया|
आईना सारे शहर की बीनाई ले गया|

डूबे हुए जहाज़ पे क्या तब्सरा करें,
ये हादसा तो सोच की गहराई ले गया|

हालाँकि बेज़ुबान था लेकिन अजीब था,
जो शख़्स मुझ से छीन के गोयाई ले गया|

इस वक़्त तो मैं घर से निकलने न पाऊँगा,
बस एक कमीज़ थी जो मेरा भाई ले गया|

झूठे क़सीदे लिखे गये उस की शान में,
जो मोतीयों से छीन के सच्चाई ले गया|

यादों की एक भीड़ मेरे साथ छोड़ कर,
क्या जाने वो कहाँ मेरी तन्हाई ले गया

अब असद तुम्हारे लिये कुछ नहीं रहा,
गलियों के सारे संग तो सौदाई ले गया|

अब तो ख़ुद अपनी साँसें भी लगती हैं बोझ सी,
उमरों का देव सारी तवनाई ले गया|

राहत इन्दौरी

बिछड़ने से मुहब्बत तो नहीं मरती

उसे कहना बिछड़ने से मुहब्बत तो नहीं मरती

बिछड़ जाना मुहब्बत की सदाकत की अलामत है
मुहब्बत एक फितरत है, हाँ फितरत कब बदलती है
सो, जब हम दूर हो जाएं, नए रिश्तों में खो जाएं
तो यह मत सोच लेना तुम, 
के मुहब्बत मर गई होगी
नहीं ऐसे नहीं होगा ..

मेरे बारे में गर तुम्हारी आंखें भर आयें
छलक कर एक भी आंसू पलक पे जो उतर आये
तो बस इतना समझ लेना,
जो मेरे नाम से इतनी तेरे दिल को अकीदत है
तेरे दिल में बिछड़ कर भी अभी मेरी मुहब्बत है 

मुहब्बत तो बिछड़ कर भी सदा आबाद रहती है
मुहब्बत हो किसी से तो हमेशा याद रहती है
मुहब्बत वक़्त के बे-रहम तूफ़ान से नहीं डरती
उसे कहना बिछड़ने से मुहब्बत तो नहीं मरती ?.!

-- शायर मोहसिन नकवी

मेरी तरह किसी से मुहब्बत उसे भी थी.

मेरी तरह किसी से मुहब्बत उसे भी थी.
ग़म को छुपा के हंसने की आदत उसे भी थी.

इस दिल से मुझको दुःख के सिवा और क्या मिला,
और दिल से इस किस्म की शिकायत उसे भी थी.

ऐ काश के कुछ पल तो उसके साथ गुज़रते,
उस पल के न मिलने की मलामत उसे भी थी.

तारीकियों में खुद अपने ही साए को ढूँढना,
खुद को तलाश करने की आदत उसे भी थी.

तन्हाइयों में खामशी को गौर से सुनना,
खामोशियों से ऐसी रफाकत उसे भी थी.

मैंने कभी न चाहा के वादे वफ़ा भी हो,
वादे हज़ार करने की आदत उसे भी थी.

आँखों में लिए आंसू रातों को जागना,
मेरी तरह किसी से मुहब्बत उसे भी थी.

Saturday, 14 June 2014

ठोकरें अपना काम करेंगी तू अपना काम करता चल

ठोकरें अपना काम करेंगी तू अपना काम करता चल
वो गिराएंगी बार बार, तू उठकर फिर से चलता चल

हर वक्त, एक ही रफ्तार से दौड़ना कतई जरुरी नहीं
मौसम की प्रतिकूलता हो, तो थोड़ा सा ठहरता चल

अपने से भरोसा न हटे बस ये ख्याल रहे तुझे सदा
नकारात्मक ख्यालों दूर रहे तुझसे थोड़ा संभलता चल

पसीने की पूंजी लूटाकर दिन रात मंजिल की राह में
दिल के ख़्वाबों को जमीनी हकीकत में बदलता चल

इक दिन में नहीं लगते किसी भी पेड़ पर फल ‘मधु’
पड़ाव दर पड़ाव अपनी मंजिल की ओर सरकता चल

सर मधुसूदन चौबे

वक्त के पन्ने मैं पलटता रहा

जाने क्या थी वो मंजिल जिसके लिए
उम्र भर मैं सफर तय करता रहा

जागा सुबह भीगी पलकें लिए
रात भर मेरा माजी बरसता रहा

खता तो अभी तक बताई नहीं
सजा जिसकी हर पल भुगतता रहा

कमी ढूंढ पाया न खुद में कभी
बस हर दिन आइना बदलता रहा

कसम दी थी उसने न लब खोलने की
दबा दर्द दिल में सुलगता रहा

खामोशी से कल फिर हुई गुफ्तगू
वो कहती रही और मैं सुनता रहा

बेईमान तरक्की किये बेहिसाब
मैं ईमान लेकर भटकता रहा

सितारे के जैसी थी किस्मत मेरी
मैं टूटता रहा, जग परखता रहा

खिलौना न मिल पाया शायद उसे
खुदा का दिल मुझसे बहलता रहा

न पाया कोई फूल सूखा हुआ
वक्त के पन्ने मैं पलटता रहा

- अज्ञात

निगाहों का उजाला ठोकरों से कम नहीं होता,

निगाहों का उजाला ठोकरों से कम नहीं होता,
बढ़े चलिए अँधेरों में ज़ियादा दम नहीं होता.

मुझे इतिहास की हर एक घटना याद है,फिर भी,
पड़ौसी पर कभी मेरा भरोसा कम नहीं होता.

भरोसा जीतना है तो ये ख़ंजर फैंकने होंगे,
किसी हथियार से अम्नो-अमाँ क़ायम नहीं होता.

परिंदों की नज़र में पेड़ केवल पेड़ होते हैं,
कोई पीपल, कोई बरगद,कोई शीशम नहीं होता.

नहीं होता मनुष्यों की तरह कोमल हृदय कोई,
मनुष्यों की तरह कोई कहीं निर्मम नहीं होता.

न जाने क्या गुज़रती होगी उसके दिल पे ऐसे में,
वो रोता भी है, दामन उसका लेकिन नम नहीं होता.

मेरे भारत की मिट्टी में ही कोई बात है वरना,
कोई गाँधी नहीं होता, कोई गौतम नहीं होता.

अशोक रावत

Friday, 13 June 2014

खुद को मात न कर

जब तक जिन्दा है तू मरने की बात न कर 
ऐ! कायरों की तरह आंसू की बरसात न कर

एक बाजी हारा है अभी जिंदगी बाकी है बहुत 
अपने हाथों से अपने पैरों पर आघात न कर

जीवन शतरंज की बिगड़ी बाजी संवर सकती है 
शह का जवाब दे जरा खुद को मात न कर

तू विराट हो सकता है अनंत आकाश जैसा
गमले में उगकर बहुत छोटी औकात न कर

यहाँ हर कोई केवल अपने में मस्त है ‘मधु’
इन पत्थरों के सामने तू बयाँ जज्बात न कर

-डॉ. मधुसूदन चौबे 

वो एक दिल जिसे पत्थर बना लिया मैंने।

वफ़ा के शीश महल में सजा लिया मैंने,
वो एक दिल जिसे पत्थर बना लिया मैंने।
यह सोच कर कि न हो ताक में खुशियाँ,
ग़मों की ओट में ख़ुद को छिपा लिया मैंने।
कभी न ख़त्म किया मैंने रौशनी की मुहाज़,
अगर चिराग बुझा, दिल जला लिया मैंने।
कमाल यह है कि जो दुश्मन पे चलना था,
वो तीर अपने कलेजे पे खा लिया मैंने।
जिसकी अदावत में एक प्यार भी था,
उस आदमी को गले से लगा लिया मैंने।

- अज्ञात

Wednesday, 11 June 2014

आप हैं,, वो हैं,,, हम हैं सबके अपने-अपने ज़ख़म हैं

आप हैं,, वो हैं,,, हम हैं
सबके अपने-अपने ज़ख़म हैं
चलाइये, वक्त की गिन्नी भी चलेगी
ज़िन्दगियाँ ख़र्च होती रक़म हैं
उसका दावा है वो एक ही बार मरेगा
ऐसे लोग दुनियाँ में बहुत कम हैं

--- Somesh Shukla ---